बहूत दिनों बाद मैं वापस आया हूँ..
आज ये, कल वोह, परसों कुछ, तरसो कुछ और...
वहाँ पहुचने की हड़बड़ी में,
जहाँ का पता भी मेरे पास नहीं था...
कितनी दूर चला गया था मैं..
इसके नजदीक, उसके नजदीक, सबके नजदीक...
पर खुद से बहूत दूर....
उन को अपनी मंजिल समझ रहा था,
पर वो तो लंबे रास्ते के पडाव ही थे...
कितना वक्त लगा मुझे यह समझने में की,
मैं एक मामूली सा मुसाफिर हूँ...
मंजिल तो बस एक ख्याल है..
और चलना मेरा काम है...
साथी केवल एक हैं....
बाकि तो सब मुसाफिर है बिल्कुल मेरी तरह,
चल रहे है अपनी अपनी मंजिल की ओर..
किस के पास वक्त है अपनी मंजिल के अलावा कही और देखने भर का भी..
बात सही है मेरे पास भी वक्त कहा है...
आज मैं यहाँ हूँ कल वहाँ...
तो क्यूँ मैं उन्हें रोकने की कोशिश करता हूँ...
या वो मुझे रोकने की...
कोई बात नहीं अब मैं समझ गया हूँ....
मैं था खुद से दूर, बहूत दूर...
पर अब मैं वापस आ गया हूँ और..
अब मंजिल नहीं बदलेगी....
मेरे पास बस खुद का साथ है और चलते रहना मेरा काम है...
बाकि सब बकवास है.....
-sa
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