08 February, 2012

कुछ है


कुछ है जिसे मैं समझ नहीं पा रहा हूँ,  
कभी कभी कुछ नहीं; फिर भी ये बेचैनी क्यूँ है
कभी कभी कुछ नहीं; फिर भी दिल इतना परेशान क्यूँ है
कभी कभी कुछ नहीं; फिर भी सिने में ये दर्द क्यूँ है...

क्या है जिसे में समझ नहीं पा रहा हूँ...
ना किसी का चेहरा
ना किसी के आने की उम्मीद
ना किसी से मिलने की उम्मीद
ना किसी की खुशी
ना किसी का गम...
तो,
क्यूँ मैं समझ नहीं पा रहा हूँ...
ना ये ग़ुरबत मुझे शर्मिंदा करती है
ना ही मेरी काबिलियत मुझे अहम देती है
ना खुबसुरती, ना बदसूरती मेरे लिए मायने रखती है
ना ही माननेवालों से, ना ही ना माननेवालों से मुझे कोई मतलब है

फिर वो कुछ क्या है जो मुझे बेचैन कर रहा है...
जब मुझे किसी चीज़ से कोई फर्क नहीं पड़ता
तो सिने में ये दर्द क्यूँ है..
कोई ना कोई उम्मीद जरुर मेरे अंदर घर बनाये है
सच है ये की मेरे अंदर उमीदों का अम्बर है
ऊपर ऊपर से सोच ना और महसूस करना
कितना आसान है ;
और बगैर उम्मीद होना कितना मुश्कल
कभी तो वो दिन आएगा जब
ना खुशी मुझे हँसाएगी, ना गम मुझे रुलाएगा...

जब वो दिन आये तब आये
हाय! पर आज ये दिल बड़ा बेक़रार है
और ना जाने क्या इससे सताए है.
कुछ है जो मैं समझ नहीं पा रहा हूँ...

No comments:

A Stories Journey

  Every story has a journey. Every story has it's own path that it will take to reach it's destination.   Every story is like a rive...