अपनी बालकनी से खड़ा अक्षत रोज नीचे के फ्लोर पर देखा करता, जहां गरिमा फूल उगाया करती थी| सुबह सुबह उठकर अक्षत अपने लिए एक कप चाय बनाता और बैलकनी के नीचे खड़ा गरिमा को निहारा करता| अभी एक सप्ताह हुए होंगे उसे अपने गांव से दिल्ली आए| उसने आनंदा कॉलेज से ग्रेजुएशन किया था और अब दिल्ली में रहकर साल 2 साल में आईएएस निकालने का प्रयास था| अक्षत बहुत ही आत्मविश्वासी व्यक्ति था, एक किसान के घर पला-बढ़ा बड़ी मशक्कत से पढ़ाई पूरी की और फिर पटना जाकर ग्रेजुएशन पूरा किया और जब बात नौकरी की आई तो उसने 1 साल महिंद्रा शोरूम में काम किया और साथ में कई परीक्षाएं देता रहा| जो साथी उसके साथ पढ़ते थे उनमें से एक ने उसे आईएएस सुझाया, कुछ सोचने समझने पर उसे लगा कि आईएएस उसके लिए सही ऑप्शन है क्योंकि वह जो परिवर्तन दुनिया में लाना चाहता है वह शायद सही पोजीशन पर पहुंच कर ला सकता है| उसने सरकार के काम करने का जो तरीका देखा है वह शायद एक कलेक्टर बनकर बदल सकता है| वह अपने पिता जैसे गरीब किसानों की जिंदगी सुधार सकता है, इस सोच के साथ वह दिल्ली आया और गरिमा के फ्लोर के ऊपर रहने लगा| यहां आने पर जिंदगी में पहली बार सुबह से किसी का इंतजार करने लगा, ऐसा कैसे हो सकता है इसे कोई पसंद नहीं आई अब तक| आई शायद पर इतनी फुर्सत नहीं थी, ना कभी ध्यान दिया; बाकी चीजों जरूरी थी| गरीबी में प्यार एक लग्जरी है, अजीब बात है ना प्यार का हक तो सबको है पर मौका नहीं मिलता| शायद जीने का हक ज्यादा जरूरी है|
खैर, अभी अक्षत दिल्ली में था और थोड़ा बहुत पैसा बचा लिया था उसने, और इस कारण सुकून तो था| पर सुकून कहां पसंद है हमें, तो बे-चैन होने के लिए इश्क कर लिया, उसने फूल उगाने वाली गरिमा से| जबकि अभी उसके जीवन का सबसे बड़ा इम्तिहान बाकी था, उसे कलेक्टर बन कर अपने जैसे लोगों की जिंदगी में उम्मीद भरना था | तैयारी के लिए दिल्ली आना अलग बात है और तैयारी करना अलग| कुछ दिनों में गरिमा को भी अपने दर्शक का एहसास हो गया और एक रोज उसने अक्षत को देखकर मुस्कुरा दिया, उस दिन अक्षत सकपका गया पर दूसरे दिन वह पहले मुस्कुराया| फिर आते जाते हाय हेलो से सिलसिला शुरु हुआ और पीवीआर साकेत तक पहुंच गया| गरिमा की खुद की कार थी, वह अपने मां बाप के साथ रहती थी, मगर गाड़ी खुद की खरीदी थी| वह दिल्ली यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रही थी बॉटनी में और साथ में एक कोचिंग इंस्टिट्यूट में पढ़ाती भी थी| अक्षत के पास ज्यादा पैसे नहीं थे खर्च करने के लिए, तो अक्सर पैसे गरिमा दिया करती थी| अक्षत दो दोस्तों के साथ ऊपरवाले माले पर रहता था और गरिमा आती जाती थी| एक दिन कोई नहीं था और दोनों कुछ ज्यादा करीब आ गए| अक्षत के मोरल स्टैंडर्ड थोड़े स्ट्रांग थे पर शायद उस दिन वह उन्हें भूल गया और कहते हैं ना जो बात एक बार भूली उसे भुला ही समझो, तो यह अक्सर का सिलसिला हो गया, इन्हें जब मौका मिलता वह उसे नहीं छोड़ते थे|
देखते देखते 2 साल बीत गए आई ए एस तो अब तक नहीं निकला पर नौकरी ढूंढने की नौबत ज़रूर आ गई| गरिमा ने पीएचडी पूरी कर ली थी और उसे डीयू में लेक्चररशिप मिल गई| उसके घर वाले उसकी शादी पर जोर देने लगे और अक्षत को कोई भी ऐसी नौकरी नहीं मिली जिस दम पर वह गरिमा के मां-बाप से बात कर पाता| उसके अपने मां बाप और उसका सपना तो 2 साल पीछे रह गए थे| एक दिन गरिमा ने बताया कि पापा ने उसकी शादी तय कर दी है और वह कुछ नहीं कर पाई और अब उनका मिलना ठीक नहीं| अक्षत सुनन था उसे समझ में नहीं आया कि वह क्या बोले और वह रोने लगा| गरिमा ने उसे गले लगाया और आंसू पोछे और कहा कि यह 2 साल मेरी जिंदगी के सबसे यादगार और महत्वपूर्ण दिन रहेंगे और वह उसे कभी नहीं भूलेगी| पर वह रोता रहा क्योंकि यह 2 साल बस उसे नहीं उसके मां-बाप के साथ-साथ पूरे गांव और पूरे जिले को याद रहेंगे, क्योंकि वहां परिवर्तन लाने वाला व्यक्ति खुद परिवर्तित हो चुका था|
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