07 March, 2019

एक वक्त था जब..

एक वक्त था जब..
तूफान सा उमड़ता मन में,

रोशनी की पहली किरण से
लेकर चांद की चांदनी तक..

बेकरार रहता था वह

महीने गुजरे, साल दशक में बदले,
वक्त के साथ बदल गया वह

बेकरारी खामोशी में बदल गई
और तूफान शांति में

क्या हुआ इस वक्त में जो?
आसान हो गई जिंदगी.

रोना छोड़ दिया शायद..
उम्मीदों को मरोड़ दिया शायद..

पर अब भी जीता है,
अब भी मिलता है यह सब से..

लेकिन महसूस नहीं करता क्या कुछ,
मर तो नहीं गया अंदर से..
कहीं शब्दों के जाल ने,
घोट  न दिया हो गला उसका,

क्योंकि जिंदा है तो लड़ेगा ना,
क्योंकि जिंदा है तो कहेगा ना,
क्योंकि जिंदा है तो कुछ चाहेगा ना

सच तो यह है -
कोई सीख नहीं सकता जीना..

रोना - महसूस करना 
हंसना - उम्मीद करना 
बेकरार होना, परेशान होना..
हिस्से हैं यह जीने के

एक वक्त है अब.. 
जी नहीं रहा है यह,

क्योंकि महसूस नहीं कर रहा है यह..

रोले, हसले, गाली खा, गाली दे
जिंदा है तो जी ले..
हिसाब नहीं सही गलत का
माफी मांग गलती की
माफ कर दे दूसरों की

वक्त है अभी..
फिर से रोना सिख ले..
मौका दे दुसरो को,
आगे बढ़कर मौका ले..

एक वक्त है अब.. 
सांस आती-जाती अंदर बाहर

एक वक्त होगा जब.. 
पढ़ नहीं सकेगा तू यह
होगा  ही नहीं जो तू पढ़ने को. 

- सोनू आनंद

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