29 June, 2020

लाइट पंखा

लाइट पंखा

वो तुम्हारा हर बार मुझे याद दिलाना की,
मैंने लाइट पंखा खुला छोड़ दिया है |
शायद तुम्हें लगता हैं की मुझे एहसास हो इस बात का
पर मुझे कोई होश नहीं उस बात का ..

वैसे ही जैसे कप मेरे हाथों से छूट कर मेरे पैरों पे गिर पड़ी एक बार
और मैं भूल गया था की वो मेरे हाथों में है..

नहीं रहती मुझे चीज़ें याद क्यूंकि मैं यहाँ हूँ ही नहीं..

अक्सर , मैं बातें करता हूँ  अपने आप से..

क्या? वो याद नहीं..

अक्सर उन लोगों से बात करता हूँ जिन्हे पढ़ा है किताबों में..

क्यों? वो मालूम नहीं..

एक नौकरी से निकला गया ये कह कर की तुम कवि हो,
हो हमारे किसी काम के नहीं
पर मैंने तो कोई कविता लिखी ही नहीं थी तब तक ..

मुझ जैसे बेसुध लोग दिखे
तो माफ़ कर देना ..

अगर होता होश तो कर ही देते ..
 अगर होता होश तो देख ही लेते ..
पर्यावरण से प्यार हमे भी है..

जान कर कोई गुस्ताखी करता नहीं बार बार..

अगर कर पाता तो उस नौकरी से भी निकला न जाता ..

आज ठाठ से पंखा लाइट के लिए सेंसर लगवा देता..

यह आँखें खोल कर सपना देखने वाले लोग अजीब होते है..

स्कूल में खाता था मार, अब खाता हूँ तुम्हारी डाट..

कर दूँ मैं लाइट पंखा बंद
पर हूँ  यहाँ से बहुत दूर मैं..

कहाँ? इसका मुझे एहसास नहीं..

पर कही न कही हूँ..
असली नकली विचारों के बीच उलझा हुआ हूँ मैं
कही न कही..

पत्नी : तुम गैस पर दूध चढ़ा कर फिर भूल गए ?

- SA

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