10 January, 2024

यदी मैं नदी होता...

यदी मैं नदी होता...

 

तो याद करता अपनी शुरुआत को समंदर में मिलने से पहले ,

भूलता नहीं उन हिमनद को जिनसे मेरा जन्म हुआ | 


हर उस जगह और लोगों की याद संजो कर रखता दिल में, जहाँ जहाँ से गुज़रा हूँ मैं ,

उन से नफरत न करता जो ज़हर डालते रहे मुझमें | 


जीवन एक प्रक्रिया है 

जिसका धेय आगे बढ़ना है |


शुरुवात में जब शुद्ध था, साफ़ था, तो भी मैं था| 

अब जब ज़हर भरा है तो भी तो मैं ही हूँ | 


शीतल अब भी करना चाहता हूँ सबकी प्यास, 

अगर भाप बना पाता तो उड़ा देता अपने अंदर के ज़हर को मैं | 


पीने न देता उन् मासूम जानवरों को ज़हरीला पानी

अगर बचा सकता तो बचा लेता उन्हें | 

जो आये मेरे तटों पे | 

बेसब्र हो चूका हूँ मैं मिलने को समुद्र से 

कभी कभी सोचता हूँ, अपने अंत की प्रतीक्षा, क्यो,  बिना सफर तय किये | 


डर इस बात का की नुकसान न पहुचाऊं किसी और को अपनी कड़वाहट से 


ये इक्कीसवी सदी है, होड़, हर तरफ आगे बढ़ने की.. 

बनाते बिजली, फैक्टरियां, मनाते  त्यौहार, 

और फैकते मुझमें बचा रासायनिक ज़हर, 

वो भी क्या करे उनमें भी तो बस गया वो ज़हर है | 

तरक़्क़ी की होड़ में मरता जा रहा ये गृह हैं | 


मेरा जीवन जितना भी हो देख नहीं पाता हूँ मैं, 

इस मानुषय की तरक़्क़ी समझ नहीं पाता  हूँ मैं | 


पहुंचा दो मुझे जल्दी उस अंत तक.. (२)


आकाशवाणी : 


हे नदी, मत कर तू प्रतीक्षा अंत की इतनी।।


वहां भी तेरा इंतज़ार कर रही ज़हर हैं,


जी ले जो मिला है 

ये भला वो भला नहीं 

जो मिला सो भला है 


मत रो याद कर अपने पूर्वजों को, 

शोक न मना  आज के सच का.. 


ज़हर हैं तो ज़हर ही सही.. 


ए नदी, अपना ले तू इस ज़हर को भी||  

-सोनू आनंद 


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